जया जादवानी की ‘काया’ में उभरा हाशिये पर खड़े समुदायों का संवेदनशील चित्रण
तृतीय लिंग, समलैंगिकता और स्त्री अस्मिता के सवालों पर केन्द्रित सशक्त साहित्यिक दस्तावेज़

समीक्षकों ने कहा – यह केवल उपन्यास नहीं, सामाजिक चेतना का नया हस्तक्षेप है
पितृसत्ता, पारिवारिक तानाशाही और आधुनिक जीवन की खोखली परतों का उद्भेदन

काव्य और संवाद से सजी साहित्यिक संध्या में गूंजा विविध विमर्श का स्वर
वसु गंधर्व-निवेदिता शंकर के गीतों और विचार-विमर्श ने बाँधा श्रोताओं का मन

जन संस्कृति मंच का आयोजन बना वैचारिक समरसता और सांस्कृतिक सहभागिता का मंच
शहर के साहित्यप्रेमियों ने भारी संख्या में दर्ज कराई उपस्थिति

       रायपुर। जया जादवानी द्वारा लिखित और मंजुल प्रकाशन से प्रकाशित चर्चित उपन्यास ‘काया’ का लोकार्पण आज जन संस्कृति मंच रायपुर द्वारा वृंदावन हॉल में एक भव्य समारोह में संपन्न हुआ। यह उपन्यास तृतीय लिंग, समलैंगिकता और पितृसत्ता के विरोध जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहरी संवेदना के साथ केंद्रित है।

लेखिका का वक्तव्य:

       लेखिका जया जादवानी ने कहा, “जब किसी की संवेदना को घायल होते देखती हूं, तो मेरी कलम उठ जाती है। ‘काया’ तृतीय लिंग की वेदना, पहचान और संघर्ष की कहानी है, जिसे समाज आज भी उपेक्षित करता है।”

समीक्षा-सत्र की प्रमुख बातें:

  • विद्या राजपूत ने कहा, “हिंदी में एलजीबीटी विमर्श को इतनी गहराई से उठाने वाली लेखिका जया जादवानी अकेली हैं।”

  • रवि अमरानी ने इसे “एक साहसिक साहित्यिक हस्तक्षेप” बताया।

  • आनंद बहादुर ने लेखिका की समग्र साहित्यिक यात्रा और स्त्री विमर्श के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की सराहना की।

  • वरिष्ठ आलोचक सियाराम शर्मा ने कहा, “‘काया’ केवल समलैंगिकता नहीं, बल्कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था और पारिवारिक तानाशाही का गहन विरोध है। यह आधुनिक जीवन के खोखलेपन का भी दस्तावेज़ है।”

सांस्कृतिक रंग:

       कार्यक्रम की शुरुआत में वसु गंधर्व और निवेदिता शंकर ने काव्य-पाठ के साथ वातावरण को संगीतमय किया। संचालन वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सोनी ने किया और आभार प्रदर्शन रूपेंद्र तिवारी ने किया।

उपस्थित गणमान्यजन:

       समारोह में डॉ. रेणु माहेश्वरी, मधु वर्मा, सुनीता शुक्ला, राजेन्द्र चांडक, प्रफुल्ल ठाकुर, मीसम हैदरी, सुरेश वाहने, संजय श्याम, डॉ. एस एस धुर्वे, हरीश कोटक, प्रेम सोनी सहित शहर के प्रमुख साहित्यप्रेमी, कवि, आलोचक, और सांस्कृतिककर्मी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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