21 वर्षों से न्याय की लड़ाई लड़ रहा पीड़ित संदीप अग्रवाल
ओपन स्पेस की जमीन बेचने और कोर्ट को गुमराह करने का आरोप
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर ₹25,000 का जुर्माना लगाया
निगम और सहकारिता विभाग ने जांच के आदेश दिए
दुर्ग। भिलाई में स्मृति ग्रह निर्माण सहकारी संस्था पर कोर्ट और निगम को गुमराह कर जमीन बेचने के गंभीर आरोप लगे हैं। इस विषय पर आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने प्रेस वार्ता कर मामले का खुलासा किया।
मुख्य मुद्दे और घटनाक्रम
- पीड़ित की कहानी:
संदीप अग्रवाल, जो संस्था से 2003 में प्लॉट खरीदार हैं, पिछले 21 वर्षों से न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं।- 2003 में प्लॉट की रजिस्ट्री के बाद, 2005 में उसी प्लॉट को संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष प्रमोद उपाध्याय ने दूसरे व्यक्ति (बल्लू सिंह ठाकुर) को बेच दिया।
- राष्ट्रीय लोक अदालत ने 2019 में आदेश दिया था कि पीड़ित को ₹49.60 लाख का मुआवजा दिया जाए, लेकिन आज तक न पैसा मिला, न प्लॉट।
- ओपन स्पेस की जमीन पर विवाद:
संस्था ने खसरा नंबर 434/1 की जमीन, जो ओपन स्पेस के लिए आरक्षित थी, 2023 में तृप्ति सुपर बाजार को 70 लाख रुपए में 90 साल की लीज पर दे दी।- इस पर निगम ने रोक लगाने की सूचना दी थी, जिसे संस्था ने कोर्ट से छिपाया।
- कोर्ट ने जमीन को कुर्क कर बेचने का आदेश दिया था, लेकिन यह खुलासा हुआ कि जमीन पर निगम की रोक लगी थी।
- उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप:
- संस्था के वर्तमान अध्यक्ष राजीव चौबे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर संपत्ति की नीलामी पर रोक हटाने का प्रयास किया।
- उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए संस्था को 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में राशि जमा करने का आदेश दिया।
- निगम और सहकारी विभाग की भूमिका:
- भिलाई नगर निगम आयुक्त ने इस जमीन का पंजीकरण रोकने के लिए पत्र लिखा।
- सहकारिता विभाग और न्यायालय ने संस्था की संपत्तियों की जांच के लिए निर्देश दिए।
प्रेस वार्ता में आम आदमी पार्टी के नेताओं के आरोप
आम आदमी पार्टी की आरटीआई विंग के प्रदेश अध्यक्ष मेहरबान सिंह ने कहा:
- संस्था के पदाधिकारी कोर्ट को गुमराह कर रहे हैं।
- ओपन स्पेस की जमीन बेचने की कोशिशें नियमों के खिलाफ हैं।
- संस्था ने सड़क, नाली और खुली भूमि की जमीनें भी बेच दी हैं।
उच्च न्यायालय के आदेश
- संस्था समझौते का पालन करने में विफल रही।
- संपत्तियों की जांच के निर्देश पर आपत्ति जताने का कोई औचित्य नहीं।
- संस्था के पदाधिकारियों के कार्य पर सवाल उठाते हुए ₹25,000 का जुर्माना लगाया गया।
सारांश
यह मामला सहकारी संस्थाओं के प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को उजागर करता है। संस्था द्वारा ओपन स्पेस की जमीन बेचने और पीड़ित को न्याय से वंचित रखने के आरोप गंभीर हैं। निगम और न्यायालय के हस्तक्षेप से जमीन बचाई जा सकी है, लेकिन पीड़ित को अभी भी न्याय का इंतजार है।