शिमला। कंगना रनौत, जो अपने बेबाक बयानों और अभिनय कौशल के लिए जानी जाती हैं, एक बार फिर सुर्खियों में हैं। हाल ही में, हिमाचल प्रदेश के मंडी से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद कंगना ने एक विवादित बयान दिया, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार से तीन कृषि कानूनों को फिर से लागू करने की मांग की, जिन्हें किसानों के भारी विरोध के बाद वापस ले लिया गया था।
कृषि कानूनों का समर्थन
मीडिया से बातचीत के दौरान कंगना ने स्पष्ट किया कि वह स्वयं एक किसान परिवार से हैं, और उन्हें लगता है कि तीनों कृषि कानून किसानों के हित में थे। उन्होंने कहा, “किसानों के जो कानून वापस हो गए हैं, मुझे लगता है वे फिर से लगने चाहिए।” कंगना ने अपने बयान में यह भी जोड़ा कि किसान खुद इन कानूनों को वापस लाने की मांग करें ताकि उनकी समृद्धि में बाधा न हो।
विरोध और प्रतिक्रिया
कंगना के इस बयान ने देश की राजनीतिक हलचल में नया विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस ने तुरंत इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह किसानों के संघर्ष का अपमान है। पार्टी ने आरोप लगाया कि 750 से अधिक किसानों की शहादत के बाद मोदी सरकार को कानून वापस लेने पड़े थे, और अब इसे फिर से लागू करने की कोशिश हो रही है। कांग्रेस ने कंगना के बयान को भाजपा के किसानों के प्रति रुख का प्रतीक बताया।
कृषि कानून और किसानों का संघर्ष
तीन कृषि कानून, जिनके नाम थे कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) अधिनियम, 2020, कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020, और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020, मोदी सरकार द्वारा 2020 में लागू किए गए थे। इन कानूनों के विरोध में देशभर के किसान एकजुट हुए, खासकर पंजाब, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश के किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर एक साल से अधिक धरना दिया। नवंबर 2021 में सरकार ने अंततः इन कानूनों को यह कहते हुए वापस लिया कि वे किसानों को सही ढंग से समझा नहीं सके।
कंगना का राजनीतिक जुड़ाव
कंगना रनौत का राजनीति में कदम रखना और भाजपा की तरफ से सांसद बनना उनके लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव है। इससे पहले भी उन्होंने अपने बयानों में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन किया है। हालांकि, उनकी बेबाकी उन्हें अक्सर विवादों में डाल देती है। कृषि कानूनों पर उनका ताजा बयान भी इसी क्रम का हिस्सा है, जिससे एक बार फिर उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ सकता है।
नतीजा और भविष्य की दिशा
कंगना रनौत का बयान यह सवाल उठाता है कि कृषि कानूनों को दोबारा लागू करने की संभावनाएं क्या हैं, और किसानों की समृद्धि को ध्यान में रखते हुए सरकार क्या नए कदम उठाएगी। हालांकि, वर्तमान परिस्थितियों में यह कहना मुश्किल है कि इन कानूनों को वापस लाने की मांग कितनी प्रासंगिक है, विशेषकर तब जब देश की विपक्षी पार्टियां और किसान संगठनों ने स्पष्ट रूप से इसका विरोध किया है।
सारांश
कंगना रनौत ने हमेशा से अपने विचार बेबाकी से रखे हैं, चाहे वह उनके लिए व्यक्तिगत रूप से कितने ही विवादास्पद क्यों न रहे हों। कृषि कानूनों पर उनकी राय से एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति में हलचल मच गई है। अब देखना होगा कि इस बयान के बाद किसानों, सरकार और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं क्या होती हैं और क्या इस मुद्दे पर फिर से कोई बड़ी बहस शुरू होगी।